haryana_farmer
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महाभारत काल की घटना है.
महाभारत युद्ध जीतने के पश्चात इन्द्रप्रस्थ महाराज युधिस्ठिर के नेत्रित्व में दिन दौगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा था. मह्रिषी नारद को तो आप जानते ही हैं वो उस समय के इन्टरनेट थे. नारायण नारायण करते युधिस्ठिर के सामने प्रकट हुए और पुछा, '' महाराज आपके राज्य में चारो और समृधि एवं खुशहाली है.''
युधिस्ठिर ने मंद मंद मुसुकराते प्रति उत्तर दिया ,'' गुरुवर, मेरे राज्य में कृषि इंदर देव की मेहरबानी पर निर्भर नहीं है.''
उपरोक्त घटना ये विचार करने पर बाध्य करती है की इन्द्रप्रस्थ की भूमि एवं जनमानस उस काल के पश्चात विकसित हुए हैं या पतित. खैर समय बड़ा बलवान है. समय - चक्र घुमा और भारतवर्ष का किसान सिर्फ और सिर्फ वर्षा पर निर्भर हो गया.वर्षा जैसे प्राक्रतिक संसाधन पर तो मनुष्य का कोई जोर नहीं चल सकता किन्तु कृषि नीतिया अवस्य वर्तमान समय में किसान को बदहाल अथवा खुशाल बनाने में अति महत्वपूर्ण हैं .
कहने को इक्कीसवी सदी है परन्तु कुछ आकंडे विचलित कर देने वाले हैं मुख्यत कृषि क्षेत्र से. 1997 से 2008 के दशक में लगभग दो लाख किसानो ने क़र्ज़ के अपमान से बचने हेतु आत्महत्या की. वही प्रतिदीन वैश्विक हो रही धरती पर सयुंक्त राज्य अमेरिका ने 1995 से 2005 के मध्य अपने किसानो को 12,50,000 करोड़ रुपए का अनुदान (सब्सिडी) प्रदान की . न केवल वहां के किसानो को अनुदान मिला अपितु अन्य कई महत्वपूर्ण लाभ भी दिए गए. किसान किसी भी देश के क्यों न हो मेहनत बराबर की करते हैं परन्तु भयंकर अदूरदर्शी कृषी नीतियों के कारण के भारतीय किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहीँ उनके अमरीकी बन्धु अपने मेहनत का यथोचित फल प्राप्त कर रहे है . जहाँ भारतवर्ष में एक किसान की औसत आय 28000 सालाना है वहीँ अमेरिका और यूरोप के किसानो का वार्षिक अनुदान 48000 रूपये है . इसमें रिपोर्ट में वहां की आमदनी शामिल नहीं है . इस प्रकार वहां के किसानो का मनोबल एवं कृषी के प्रति रुझान देखते ही बनता है. इसी वजह से बहुत से यूरोपीय देशो में औसत कृषि आय शेष अर्थव्यस्था की औसत से दोगुनी है.
सदस्य इस बात से हमे अवगत करा सकते हैं और समझा सकते हैं की बराबर की मेहनत करने के पश्चात भी अपने यहाँ का किसान आमदनी में मामले में पिच्छे क्यों है.
इस अनुदान के तिलस्म को विस्तार से समझाने के लिए कृपया सदस्य आगे आये!
निति निर्माता , शिक्षा विशेज्ञ , कृषी विभाग के पास किसानो की आत्महत्या का कोई जवाब नहीं है. इसके लिए किसान संघठन एवं राजनितिक दल भी बराबर के जिम्मेदार है. जब गन्ना किसान आन्दोलन करके गन्ना मूल्य वृदि की मांग मनवा सकते हैं तो कृषी अनुदान की बात उनके ऐजेंडा में शामिल क्यों नहीं हो पाती. wto दोहा विकास वार्ता के अनुसार भारत को अपने आयात शुल्को को लगभग शून्य तक घटना पड़ सकता है .फलस्वरूप खादन्न के आयात का सीधा असर किसानो पर. आत्महत्या की संख्या में अपूर्व बढोतरी. वहीँ दूसरी और अमेरिका एवं यूरोप पूरी दुनिया को खाधान आव्यसक्ताओ के लिए अपने ऊपर निर्भर बनाने की और अग्रसर है.
कुछ यक्ष प्रश्न छोड़ रहा हूँ आप लोगो के लिए :-
क्या कृषी पैदावार बदने से भारतीय किसानो आमदनी बढती है? अगर हाँ तो कैसे?
पशिमी देशो में किसान समृद्ध सिर्फ उच्च पैदावार की वजह से है?
कृषक संगठनो की नाकामियों का मूल कारण क्या है ?
राजनितिक पार्टियों के पास अपने चुनावी मुद्दों पर कृषि के समग्न विकास के लिए कोई साफ़ लाइन क्यों नहीं है ?
किसानो की आत्महत्या पर राजनितिक पार्टियों की चुप्पी का क्या कारण है ? कृषि मंत्रालय ने इस त्रासदी के लिए क्या कदम उठाये हैं ?
इसके अलावा सदस्य आसान शब्दों में रासट्रीय एवं अंतररासट्रीय कृषी नीतियों एवं उनके अंशकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव की विवेचना करने के लिए आमन्त्रित है !
महाभारत युद्ध जीतने के पश्चात इन्द्रप्रस्थ महाराज युधिस्ठिर के नेत्रित्व में दिन दौगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा था. मह्रिषी नारद को तो आप जानते ही हैं वो उस समय के इन्टरनेट थे. नारायण नारायण करते युधिस्ठिर के सामने प्रकट हुए और पुछा, '' महाराज आपके राज्य में चारो और समृधि एवं खुशहाली है.''
युधिस्ठिर ने मंद मंद मुसुकराते प्रति उत्तर दिया ,'' गुरुवर, मेरे राज्य में कृषि इंदर देव की मेहरबानी पर निर्भर नहीं है.''
उपरोक्त घटना ये विचार करने पर बाध्य करती है की इन्द्रप्रस्थ की भूमि एवं जनमानस उस काल के पश्चात विकसित हुए हैं या पतित. खैर समय बड़ा बलवान है. समय - चक्र घुमा और भारतवर्ष का किसान सिर्फ और सिर्फ वर्षा पर निर्भर हो गया.वर्षा जैसे प्राक्रतिक संसाधन पर तो मनुष्य का कोई जोर नहीं चल सकता किन्तु कृषि नीतिया अवस्य वर्तमान समय में किसान को बदहाल अथवा खुशाल बनाने में अति महत्वपूर्ण हैं .
कहने को इक्कीसवी सदी है परन्तु कुछ आकंडे विचलित कर देने वाले हैं मुख्यत कृषि क्षेत्र से. 1997 से 2008 के दशक में लगभग दो लाख किसानो ने क़र्ज़ के अपमान से बचने हेतु आत्महत्या की. वही प्रतिदीन वैश्विक हो रही धरती पर सयुंक्त राज्य अमेरिका ने 1995 से 2005 के मध्य अपने किसानो को 12,50,000 करोड़ रुपए का अनुदान (सब्सिडी) प्रदान की . न केवल वहां के किसानो को अनुदान मिला अपितु अन्य कई महत्वपूर्ण लाभ भी दिए गए. किसान किसी भी देश के क्यों न हो मेहनत बराबर की करते हैं परन्तु भयंकर अदूरदर्शी कृषी नीतियों के कारण के भारतीय किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहीँ उनके अमरीकी बन्धु अपने मेहनत का यथोचित फल प्राप्त कर रहे है . जहाँ भारतवर्ष में एक किसान की औसत आय 28000 सालाना है वहीँ अमेरिका और यूरोप के किसानो का वार्षिक अनुदान 48000 रूपये है . इसमें रिपोर्ट में वहां की आमदनी शामिल नहीं है . इस प्रकार वहां के किसानो का मनोबल एवं कृषी के प्रति रुझान देखते ही बनता है. इसी वजह से बहुत से यूरोपीय देशो में औसत कृषि आय शेष अर्थव्यस्था की औसत से दोगुनी है.
सदस्य इस बात से हमे अवगत करा सकते हैं और समझा सकते हैं की बराबर की मेहनत करने के पश्चात भी अपने यहाँ का किसान आमदनी में मामले में पिच्छे क्यों है.
इस अनुदान के तिलस्म को विस्तार से समझाने के लिए कृपया सदस्य आगे आये!
निति निर्माता , शिक्षा विशेज्ञ , कृषी विभाग के पास किसानो की आत्महत्या का कोई जवाब नहीं है. इसके लिए किसान संघठन एवं राजनितिक दल भी बराबर के जिम्मेदार है. जब गन्ना किसान आन्दोलन करके गन्ना मूल्य वृदि की मांग मनवा सकते हैं तो कृषी अनुदान की बात उनके ऐजेंडा में शामिल क्यों नहीं हो पाती. wto दोहा विकास वार्ता के अनुसार भारत को अपने आयात शुल्को को लगभग शून्य तक घटना पड़ सकता है .फलस्वरूप खादन्न के आयात का सीधा असर किसानो पर. आत्महत्या की संख्या में अपूर्व बढोतरी. वहीँ दूसरी और अमेरिका एवं यूरोप पूरी दुनिया को खाधान आव्यसक्ताओ के लिए अपने ऊपर निर्भर बनाने की और अग्रसर है.
कुछ यक्ष प्रश्न छोड़ रहा हूँ आप लोगो के लिए :-
क्या कृषी पैदावार बदने से भारतीय किसानो आमदनी बढती है? अगर हाँ तो कैसे?
पशिमी देशो में किसान समृद्ध सिर्फ उच्च पैदावार की वजह से है?
कृषक संगठनो की नाकामियों का मूल कारण क्या है ?
राजनितिक पार्टियों के पास अपने चुनावी मुद्दों पर कृषि के समग्न विकास के लिए कोई साफ़ लाइन क्यों नहीं है ?
किसानो की आत्महत्या पर राजनितिक पार्टियों की चुप्पी का क्या कारण है ? कृषि मंत्रालय ने इस त्रासदी के लिए क्या कदम उठाये हैं ?
इसके अलावा सदस्य आसान शब्दों में रासट्रीय एवं अंतररासट्रीय कृषी नीतियों एवं उनके अंशकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव की विवेचना करने के लिए आमन्त्रित है !