राष्ट्रीय किसान महासम्मेलन, जंतर-मंतर, दिल्ली (12 मई 2017)

kvssagarsingh

New Member
16807158_1107376502705738_3898204340286847111_n.jpg
आजादी के 70 साल बाद आज देश जहाँ पहुँचा है वो किसी से छुपा नहीं है, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बलात्कार, भुखमरी, हिंसा और आतंकवाद से देश ग्रस्त है, मगर इस देश में यदि कोई वर्ग सबसे ज्यादा उपेक्षित, शोषित, अत्याचारित होके मर रहा है तो वो है देश के 70 प्रतिशत किसान जो मिट्टी से मिट्टी होकर मिट्टी में मिल गया। जिस मिट्टी के आधार पर सारा देश जी रहा है, उस किसान के जीने का और जीविका का मौलिक अधिकार उससे हर दिन छीना जा रहा है। खाद्य (भोजन), वस्त्र, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य रूपी मूलभूत आवश्यकता की भी सुनिश्चितता नहीं है, और साथ ही साथ जल, जंगल, जमीन पर आधारित जीविका उसके हाथ से छीन ली गई है। इसलिए किसान बचेगा तो देश बचेगा इसको मूलभूत आधार मानकर उड़ीसा में नवनिर्माण कृषक संगठन और बिहार में किसान विकास संघ ने प्राइस (उचित दाम), प्रेस्टीज (सम्मान) और पेंशन (सामाजिक सुरक्षा भत्ता) की अवधारणा की मांग को लेकर (एक नए ढंग से) लड़ाई की शुरूआत की है। यह संगठन कोई राजनैतिक पार्टी नहीं है और नाहि कोई एन.जी.ओ. है बल्कि जाति, धर्म और दल से ऊपर उठकर 70 प्रतिशत किसान को संगठित करने का एक प्रक्रिया और प्रयास है।

किसान जो पैदा करता है उसका उचित मूल्य कभी उसको मिलता नहीं, साबुन तेल से लेकर, मोबाइल, गाड़ी एवं कम्प्यूटर तक जितनी वस्तु कम्पनी पैदा करता है, उसका मूल्य स्वयं कम्पनी निर्धरित करती है, और उसका आधार है Maximum Retail Price (MRP) अर्थात अधिक्तम खुदरा मूल्य। मगर किसान जो पैदा करता है उसका मूल्य केन्द्र सरकार निर्धारित करती है उसका आधार है न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price, MSP) अर्थात किसान कम्पनी की जो वस्तु खरीद करेगा वो सर्वाधिक मूल्य पर और जो अपनी उत्पादित वस्तु बिक्री करेगा वो न्यूनतम मूल्य पर, यहीं पर किसान को गरीब बना दिया गया। हर वस्तु का विनिमय मूल्य सोना को केन्द्र में रखते हुए आर्थिक नीति के मुताबिक तय किया जाता है, 1972 में 10 ग्राम सोने का मूल्य 240 रूपया था उस समय धान का प्रति क्विंटल 80 रूपया, गेंहूँ का 76 रूपया प्रति क्विंटल, एक चपरासी का तनख्वाह 120 रूपया था। जब आज सोना 100 गुना बढ़ा है लगभग हर वस्तु और श्रम का मूल्य भी उसी अनुपात में 100 गुना बढ़ना चाहिए था। आज सरकारी कर्मचारी की तनख्वाह 1000 से 2000 गुणा बढ़ा मगर धान और गेंहूँ का मूल्य सिर्फ 18 गुणा बढ़ा। सोना, खाद, सीमेंट, मजदूरी सब के दाम बढ़े सिर्फ अनाज को छोड़कर। यदि धान और गेंहूँ का मूल्य भी समानुपात में बढ़ता तो धान का 8000 रूपया प्रति क्विंटल और गेहूँ का 7600 रूपया प्रति क्विंटल होता। इसका मतलब है इस न्यूनतम उचित मूल्य से काटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देना किसान के खून का शोषण है। अगर (MOP) प्रेस्टीज (सम्मान) की बात कहें तो वास्तव में किसान असली मालिक है, उसके हाथ में 2 चाबी है, रोटी और संख्याबल। रोटी पैदा नहीं करेगा तब चपरासी से नौकरशाह, शिक्षक, जवान और प्रधनमंत्री भूख से मरे फिरेंगे और जिस दिन 70 प्रतिशत किसान संगठित हो जाएंगा उस दिन सुबह होने से पहले न सिर्फ सत्ता बल्कि व्यवस्था पलट जाएगी। किसान से सबसे ज्यादा अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) लेकर नौकरशाही और नेता लाखों रूपया तनख्वाह ले रही है, मगर किसान मालिक होते हुए भी ब्लाक, तहसील, कलेक्टर आॅफिस में उसकी इज्जत नहीं है। इसलिए प्रेस्टीज (सम्मान) एक असली राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सवाल है जिसको नजरअंदाज करके उसका स्वाभिमान और स्वावलंबन का आधार जल, जंगल, जमीन छीना जा रहा है, विकास के नाम पर। ऐसे ही पेंशन जिसका मूल है सामाजिक सुरक्षा भत्ता। संविधान में अनुच्छेद 21 के मुताबिक कल्याणकारी सरकार का कर्तव्य है ‘‘मौलिक अधिकार’’ की सुरक्षा करना अर्थात् जीने का अधिकार और जीविका का अधिकार की सुरक्षा। जीने का अधिकार का मतलब है, खाद्य (भोजन), वस्त्र, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूल आवश्यकता की पूर्ति करना अर्थात् जो राष्ट्र को सेवा देता है राष्ट्र की कल्याणकारी सरकार देहांत होने तक उसका मौलिक अधिकार की सुरक्षा करेगा। उसी आधार पर सरकार एक चपरासी को जो विद्यालय के बरामदे में बैठकर एक बार घंटी बजाने पर 100 रूपया के हिसाब से 6 बार घंटी बजाने से 600 रूपया प्रति दिन और महीने में कम से कम 18000 रूपया मुहैया कराती है और देहांत होने तक पेंशन 9000 रूपया मिलता है। एक शिक्षक को 40,000 ऐसे ही डाक्टर, इंजीनियर, जवान का है, और एक आई.ए.एस अफसर को 2.5 लाख रूपया तक मिलता है। मगर जो किसान 24 घंटे से 18 घंटे हर दिन हर क्षण में जोखिम उठाकर देश के पेट को सुरक्षा की सेवा देता है उसकी सुरक्षा भत्ता (पेंशन) शून्य क्यों? क्यों संविधान अनुच्छेद 21 उसके लिए लागू नहीं होता? क्या उसके जीने के लिए मौलिक आवश्यकता की पूर्ति की जरूरत नहीं है? और इसलिए आज लगभग 50 प्रतिशत किसान खेती छोड़ चुके हैं या छोड़ने का मन बना रहे हैं।

इसलिए हम मांग रख रहे है कि कम से कम किसान की उत्पादित फसल का न्यूनतम उचित मूल्य (MOP) दिया जाए। (2010 में सोना को आधार बनाकर) धन और गेंहूँ का प्रति क्विंटल 5000 रूपया न्यूनतम उचित मूल्य निर्धारित किया जाए। ऐसे ही किसान को किसान सुरक्षा भत्ता 20 साल की उम्र से जब वो मिट्टी में हाथ लगाकर उत्पादन करता है उसको 5000 रूपया मासिक देने की मांग करते हैं। तब किसान इज्जत के साथ जीवन जी पाएगा। प्राइस (उचित दाम), प्रेस्टीज (सम्मान), पेंशन (किसान सुरक्षा भत्ता) को लेकर नव निर्माण कृषक संगठन, उड़ीसा और किसान विकास संघ, बिहार एक साथ मिलकर अगला 12 मई 2017 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक राष्ट्रीय किसान महासम्मेलन का आयोजन करने जा रहा है। जिससे हम सभी स्वर्गीय पूर्व प्रधनमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जय जवान के नारे के साथ-साथ जय किसान नारे को धरती पर उतारने का साकार प्रयास करने का संकल्प ले पाएंगे। हम इस महासम्मेलन में आप किसान मजदूर, नौजवान, बुद्धिजीवी, छात्र, धर्मगुरू और राजनैतिक, व्यक्ति, सामाजिक गणों को सादर आमंत्रित करते हैं।



जय किसान, जय हिंद

अक्षय कुमार,
शेषनंदा जी,
नव निर्माण कृषक संगठन (उड़ीसा)

प्रताप सिंह - 9911955109, हिमांशु- 9811160291,
सागर सिंह- 7631518758,
 

Back
Top